BHARATVAANI...KAVITA SINGS INDIA I Sing.. I Write.. I Chant.. I Recite.. I'm here to Tell Tales of my glorious motherland INDIA, Tales of our rich cultural, spiritual heritage, ancient Vedic history, literature and epic poetry. My podcasts will include Bharat Bharti by Maithilisharan Gupta, Rashmirathi and Parashuram ki Prateeksha by Ramdhari Singh Dinkar, Kamayani by Jaishankar Prasad, Madhushala by Harivanshrai Bachchan, Ramcharitmanas by Tulsidas, Radheshyam Ramayan, Valmiki Ramayan, Soun ...
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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This is my first podcast, please have fun listening and give feedback :)
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नाटकवाला प्रस्तुत अनेकविध नाट्यकृती.
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Collection of poems, stories and much more!!!
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This is my first podcast, please have fun listening and give feedback :)
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इतिहासकारों रचनाकारों के विचारों से ओतप्रोत होने के लिए मुझसे जुड़े रहिए।
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This is my poetry podcast.
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Seberapa sering kepala kita riuh sekali? Terkadang, ada banyak hal di dunia yang sulit untuk dijabarkan. Tentang hal paling sederhana, hingga yang paling rumit untuk ditemukan jawabannya. Namun, ada juga beberapa orang yang mau berbagi sedikit cerita dalam episode hidupnya. Tahu kenapa? Karena ada beberapa kisah, yang tidak seharusnya dibuang begitu saja. Mari sama-sama melihat hidup dari sudut pandang yang berbeda. Setiap motivasi tidak akan jadi inspirasi jika tidak kamu mulai dari diri se ...
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Dr KAVITA SHARMA
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Presenting Hindi poems written by eminent poets: Recitation by Sangita Tripathi.
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आओ जज़्बातों को लफ्ज़ देने की कोशिश करें MANKAHI ALSO AVAILABLE ON YOU TUBE KINDLY SUBSCRIBE https://youtube.com/c/MANKAHIGURTEJSINGHOFFICIAL
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my Marathi podcast is mainly about post retirement passion following for overcoming loneliness,emptiness and negativity which seeps in due to lot of time at disposal .workload is less and kids are not around.So its about my passion of traveling.I will come with my own travel stories and some from different fellow travellerswith their amazing stories.
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Success stories and study capsules to pass PMP in 21 Days with Kavita Sharma - Significant Contributor PMBOK sixth edition
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Wo meri kya hai- kavita Vivek ji thank you for choosing my voice to give life to your poem Friends this poem is a amazing creation to experience one side Love
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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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"Inner Sense with Kavita" is a podcast by Kavita Satwalekar where she helps you make sense of your inner world. By combining her background in Psychology and Organizational Development with over 20 years of global experience in Coaching and Mentoring, Kavita brings a unique perspective to help you lead from within. Being aware of your values and beliefs is the first step towards understanding why you behave and react in certain ways. Understanding yourself from the inside out provides you wi ...
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Watch now at youtube.com/@LightsCameraConversation or listen on iHeartRadio or your favorite podcast platform! ★ Join entertainment entrepreneurs Walid Chaya and Kavita Raj over a drink on "Lights Camera Conversation," the ultimate Hollywood insider podcast. Discover the glamorous-yet-authentic sides of show business, experience Hollywood special guests, and find inspiration for music, film lovers, and creative professionals alike. Walid Chaya, actor, director, and writer based in Los Angele ...
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Are you fascinated by the stories and mythology of ancient India? Do you want to learn more about the epic tale of Ramayana and its relevance to modern-day life? Then you should check out Ramayan Aaj Ke Liye, the ultimate podcast on Indian mythology and culture. Hosted by Kavita Paudwal, this podcast offers a deep dive into the world of Ramayana and its characters, themes, and teachings.
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Ve Kaise Din They | Kirti Choudhary
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वे कैसे दिन थे | कीर्ति चौधरी वे कैसे दिन थे जब चीज़ें भागती थीं और हम स्थिर थे जैसे ट्रेन के एक डिब्बे में बंद झाँकते हुए ओझल होते थे दृश्य पल के पल में— ...कौन थी यह तार पर बैठी हुई बुलबुल, गौरय्या या नीलकंठ? आसमान को छूता हुआ सवन का जोड़ा था? दूरी पर झिलमिल-झिलमिल करती नदिया थी? या रेती का भ्रम? कभी कम कभी ज़्यादा प्रश्न ही प्रश्न उठते थे हम विमूढ…
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Soundaryalahari Shlok 89_ नखै-र्नाकस्त्रीणां करकमल-सङ्कोच-शशिभिः_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndia
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Soundaryalahari Shlok 89_नखै-र्नाकस्त्रीणां करकमल-सङ्कोच-शशिभिः_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaनखै-र्नाकस्त्रीणां करकमल-सङ्कोच-शशिभिःतरूणां दिव्यानां हसत इव ते चण्डि चरणौ ।फलानि स्वःस्थेभ्यः किसलय-कराग्रेण ददतांदरिद्रेभ्यो भद्रां श्रियमनिश-मह्नाय ददतौ ॥ 89 ॥--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/kavita…
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दिन भर | रामदरश मिश्रा आज दिन भर कुछ नहीं किया सुबह की झील में एक कंकड़ी मारकर बैठ गया तट पर और उसमें उठने वाली लहरों को देखता रहा शाम को लोग घर लौटे तो न जाने क्या-क्या सामान थे उनके पास मेरे पास कुछ नहीं था केवल एक अनुभव था कंकड़ी और लहरों के सम्बन्ध से बना हुआ।על ידי Nayi Dhara Radio
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Aurat Ki Ghulami | Sheoraj Singh 'Bechain'
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औरत की गुलामी | डॉ श्योराज सिंह ‘बेचैन’ किसी आँख में लहू है- किसी आँख में पानी है। औरत की गुलामी भी- एक लम्बी कहानी है। पैदा हुई थी जिस दिन- घर शोक में डूबा था। बेटे की तरह उसका- उत्सव नहीं मना था। बंदिश भरा है बचपन- बोझिल-सी जवानी है। औरत की गुलामी भी- एक लम्बी कहानी है। तालीम में कमतर है-- बाहरी हवा ज़हर है। लड़का कहीं भी जाए- उस पर कड़ी नज़र है। …
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Chal Insha Apne Gaon Mein | Ibn e Insha
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चल इंशा अपने गाँव में | इब्ने इंशा यहाँ उजले उजले रूप बहुत पर असली कम, बहरूप बहुत इस पेड़ के नीचे क्या रुकना जहाँ साये कम,धूप बहुत चल इंशा अपने गाँव में बेठेंगे सुख की छाओं में क्यूँ तेरी आँख सवाली है ? यहाँ हर एक बात निराली है इस देस बसेरा मत करना यहाँ मुफलिस होना गाली है जहाँ सच्चे रिश्ते यारों के जहाँ वादे पक्के प्यारों के जहाँ सजदा करे वफ़ा पां…
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सात पंक्तियाँ - मंगलेश डबराल मुश्किल से हाथ लगी एक सरल पंक्ति एक दूसरी बेडौल-सी पंक्ति में समा गई उसने तीसरी जर्जर क़िस्म की पंक्ति को धक्का दिया इस तरह जटिल-सी लड़खड़ाती चौथी पंक्ति बनी जो ख़ाली झूलती हुई पाँचवीं पंक्ति से उलझी जिसने छटपटाकर छठी पंक्ति को खोजा जो आधा ही लिखी गई थी अन्ततः सातवीं पंक्ति में गिर पड़ा यह सारा मलबा।…
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बहुरूपिया | मदन कश्यप जब वह पास आया तो पाँव में प्लास्टिक की चप्पल देखकर एकदम से हँसी फूट पड़ी फिर लगा भला कैसे संभव है महानगर की क्रूर सड़कों पर नंगे पाँव चलना चाहे वह बहुरूपिया ही क्यों न हो वैसे उसने अपनी तरफ़ से कोशिश की थी दुम इतनी ऊँची लगायी थी कि वह सिर से काफ़ी ऊपर उठी दिख रही थी बाँस की खपच्चियों पर पीले काग़ज़ साटकर बनी गदा कमज़ोर भले हो चमक…
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Ik Roz Doodh Ne Ki Pani Se Paak Ulfat | Unknown
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इक रोज़ दूध ने की पानी से पाक उल्फ़त | अज्ञात इक रोज़ दूध ने की, पानी से पाक उल्फ़त इक ज़ात हो गए वो, मिल-जुल के भाई भाई इनमें बढ़ी वो उल्फ़त, एक रंग हो गए वो एक दूसरे ने पाया, सौ जान से फ़िदाई हलवाई ने उनकी, उल्फ़त का राज़ समझा दोनों से भर के रक्खी, भट्टी पे जब कढ़ाई बरछी की तरह उट्ठे, शोले डराने वाले भाई रहे सलामत, पानी के दिल में आई ख़ामोश भाप बनकर, भाई…
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Arrey Ab Aisi Kavita Likho | Raghuvir Sahay
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अरे अब ऐसी कविता लिखो | रघुवीर सहाय अरे अब ऐसी कविता लिखो कि जिसमें छंद घूमकर आय घुमड़ता जाय देह में दर्द कहीं पर एक बार ठहराय कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूं वही दो बार शब्द बन जाय बताऊँ बार-बार वह अर्थ न भाषा अपने को दोहराय अरे अब ऐसी कविता लिखो कि कोई मूड़ नहीं मटकाय न कोई पुलक-पुलक रह जाय न कोई बेमतलब अकुलाय छंद से जोड़ो अपना आप कि कवि की व्यथा हृद…
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Prem Karna Ya Phasna | Rupam Mishra
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प्रेम करना या फंसना - रूपम मिश्रा हम दोनों नए-नए प्रेम में थे उसके हाथ में महँगा-सा फोन था और बाँह में औसत-सी मैं फोन में कई खूबसूरत लड़कियों की तसवीरें दिखाते हुए उसने मुस्कुराते हुए गर्व से कहा, देख रही हो ये सब मुझपे मरती थीं मैंने कहा और तुम! उसने कहा, ज़ाहिर है मैं भी प्रेम करता था मुझे भी थोड़ा रोमांच हुआ मैंने हसरत और थोड़ी रूमानियत से लजाते …
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ऋण फूलों-सा | सुनीता जैन इस काया को जिस माया ने जन्म दिया, वह माँग रही-कि जैसे उत्सव के बाद दीवारों पर हाथों के थापे रह जाते जैसे पूजा के बाद चौरे के आसपास पैरों के छापे रह जाते जैसे वृक्षों पर प्रेम संदेशों के बँधे, बँधे धागे रह जाते, वैसा ही कुछ कर जाऊँ सोच रही, माया के धीरज का काया की कथरी का यह ऋण फूलों-सा हल्का- किन शब्दों में तोल, चुकाऊँ…
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Saath Chalte Chalte Tum | Rashmi Pathak
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साथ चलते चलते तुम | रश्मि पाठक तुम बहुत आगे निकल गए जाने कितना समय लगेगा तुम तक पहुँचने में सोचती थी कैसे कटेंगे ये पल छिन बीत गया एक बरस तुम्हारे बिन बंद हुए अब मन के सारे द्वार रुक गया है मेरा प्रति स्पंदन रह रह कर टीसती है वेदना और बूँद बूँद आँखों के कोनों से झड़ती है चुपचाप तुम नहीं हो मेरे पासעל ידי Nayi Dhara Radio
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फ़िलहाल | उदय प्रकाश एक गत्ते का आदमी बन गया था लौहपुरुष बलात्कारी हो चुका था सन्त व्यभिचारी विद्वान चापलूस क्रान्तिकारी मदारी को घोषित कर दिया गया था युग-प्रवर्तक अख़बार और चैनल चीख़-चीख़ कर कह रहे थे आ गयी है सच्ची जम्हूरियत जहाँ सबसे ज्यादा लाशें बिछी थीं वहीं हो रहा था विकास जो बैठा था किसी उजड़े पेड़ के नीचे पढ़ते हुए अकेले में कोई बहुत पुरानी…
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Kavita Ke Liye | Snehmayi Chaudhary
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कविता के लिए | स्नेहमयी चौधरी कविता लिखने के लिए जो परेशान करते थे उन सबको मैंने धीरे-धीरे अपने से काट दिया। जैसे : ज़रा सी बात पर बड़ी देर तक घुमड़ते रहना, अपने किए को हर बार ग़लत समझना, निरंतर अविश्वास की झिझक ओढ़े घूमना। अब सिर ऊँचा कर स्वस्थ हो रही हूँ, मकान बनाने में जुटे मज़दूरों को देख रही हूँ।…
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Jo Maar Kha Royi Nahin | Vishnu Khare
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जो मार खा रोईं नहीं | विष्णु खरे तिलक मार्ग थाने के सामने जो बिजली का एक बड़ा बक्स है उसके पीछे नाली पर बनी झु्ग्गी का वाक़या है यह चालीस के क़रीब उम्र का बाप सूखी सांवली लंबी-सी काया परेशान बेतरतीब बढ़ी दाढ़ी अपने हाथ में एक पतली हरी डाली लिए खड़ा हुआ नाराज़ हो रहा था अपनी पांच साल और सवा साल की बेटियों पर जो चुपचाप उसकी तरफ़ ऊपर देख रही थीं ग़ु्स…
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कल्पवृक्ष | दामोदर खड़से कविता भीतर से होते हुए जब शब्दों में ढलती है भीतरी ठिठुरन ऊष्मा के स्पर्श से प्राणवान हो उठती है ज्यों थकी हुई प्रतीक्षा बेबस प्यास दुत्कारी आशा अनायास ही किसी पुकार को थाम लेती है शब्द सार्थक हो उठते हैं और एकांत भी सान्निध्य से भर जाते हैं कविता कल्पवृक्ष है।על ידי Nayi Dhara Radio
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भाषा | स्नेहमयी चौधरी यह नहीं कि उसे कोई शिकायत नहीं, लेकिन अब वह अपने पक्ष में कोई तर्क न देगी, न चाहेगी— लगाए गए आरोपों का कोई निराकरण। यह नहीं कि उसके पास कहने को कुछ नहीं, शायद यह कि बहुत कुछ है। अब कोई न पूछे उसके निजी दस्तावेज़, यही तो उसकी संपत्ति है। यद्यपि निष्क्रिय विद्रोह आज की भाषा नहीं : यह नहीं कि वह जानती नहीं। शायद यही उसके लिए सही …
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Pura Parivaar Ek Kamre Mein | Laxmi Shankar Bajpai
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पूरा परिवार एक कमरे में | लक्ष्मीशंकर वाजपेयी पूरा परिवार, एक कमरे में कितने संसार, एक कमरे में। हो नहीं पाया बड़े सपनों का छोटा आकार, एक कमरे में। ज़िक्र दादा की उस हवेली का सैंकड़ों बार, एक कमरे में। शोरगुल, नींद, पढ़ाई, टी.वी. रोज़ तकरार, एक कमरे में। एक घर, हर किसी की आँखों में सबका विस्तार, एक कमरे में।…
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Main Buddh Nahi Banna Chahta | Shahanshah Alam
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मैं बुद्ध नहीं बनना चाहता | शहंशा आलम मैं बुद्ध नहीं बनना चाहता तुम्हारे लिए बुद्ध की मुस्कराहट ज़रूर बनना चाहता हूँ बुद्ध मर जाते हैं जिस तरह पिता मर जाते हैं किसी जुमेरात की रात को बुद्ध की मुस्कान लेकिन जीवित रहती है हमेशा मेरे होंठों पर ठहरकर जिस मुस्कान पर तुम मर मिटती हो तेज़ बारिश के दिनों में।…
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गीत | डॉ श्योराज सिंह 'बेचैन' मज़दूर-किसानों के अधर यूँ ही कहेंगे। हम एक थे, हम एक हैं, हम एक रहेंगे।। मज़हब, धर्म के नाम पर लड़ना नहीं हमें। फिर्को में जातियों में बिखरना नहीं हमें |। हम नेक थे, हम नेक हैं, हम नेक रहेंगे । समता की भूख हमसे कह रही है अब उठो। सामन्तों, दरिन्दों की बढ़ो, रीढ़ तोड़ दो ।। अपने हकूक दुश्मनों से लेके रहेंगे | कैसा अछूत-छूत…
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सूरज | आकांक्षा पांडे तुम, हां तुम्हीं तुमसे कुछ बताना चाहती हूँ। माना अनजान हूं दिखती नादान हूं कुछ ज्यादा कहने को नहीं है कोई बड़ा फरमान नही है बस इतना दोहराना है जग में सबने जाना है पीड़ा घटे बताने से रात कटे बहाने से लेकिन की थोड़ी कंजूसी करके इतनी कानाफूसी बात का बतंगड़ बनाया ऐसा मायाजाल पिरोया कि अब डरते हो तुम कहने से अपने मन की देने दुहाई त…
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Andhera Bhi Ek Darpan Hai | Anupam Singh
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अँधेरा भी एक दर्पण है | अनुपम सिंह अँधेरा भी एक दर्पण है साफ़ दिखाई देती हैं सब छवियाँ यहाँ काँटा तो गड़ता ही है फूल भी भय देता है कभी नहीं भूली अँधेरे में गही बाँह पृथ्वी सबसे उच्चतम बिन्दु पर काँपी थी जल काँपा था काँपे थे सभी तत्त्व वह भी एक महाप्रलय था आँधेरे से सन्धि चाहते दिशागामी पाँव टकराते हैं आकाश तक खिंचे तम के पर्दे से जीवन-मृत्यु और भय …
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Soundaryalahari Shlok 88_ पदं ते कीर्तीनां प्रपदमपदं देवि विपदां_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndia
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Soundaryalahari Shlok 88_पदं ते कीर्तीनां प्रपदमपदं देवि विपदां_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaपदं ते कीर्तीनां प्रपदमपदं देवि विपदांकथं नीतं सद्भिः कठिन-कमठी-कर्पर-तुलाम् ।कथं वा बाहुभ्या-मुपयमनकाले पुरभिदायदादाय न्यस्तं दृषदि दयमानेन मनसा ॥ 88 ॥--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/kavita-sings-indi…
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टहनियाँ | जयप्रकाश कर्दम काटा जाता है जब भी कोई पेड़ बेजान हो जाती हैं टहनियां बिना कटे ही पेड़ है क्योंकि टहनियां हैं टहनियां हैं क्योंकि पेड़ है अर्थहीन हैं एक दूसरे के बिना पेड़ और टहनियां ठूंठ हो जाता है पेड़ टहनियों के अभाव में टहनियां हैं पेड़ का कुनबा पेड़ ने देखा है अपने कुनबे को बढते हुए टहनियों ने देखा है पेड़ को कटते हुए कटकर गिरने से पह…
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Ek Avishwasniya Sapna | Vishwanath Prasad Tiwari
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एक अविश्वसनीय सपना - विश्वनाथ प्रसाद तिवारी एक दिन उसने सपना देखा बिना वीसा बिना पासपोर्ट सारी दुनिया में घूम रहा है वह न कोई सरहद, न कोई चेकपोस्ट समुद्रों और पहाड़ों और नदियों और जंगलों से गुज़रते हुए उसने अद्भुत दृश्य देखे... आकाश के, बादलों और रंगों के... अक्षत यौवना प्रकृति उसके सामने थी... निर्भय घूम रहे थे पशु पक्षी। पुरुष स्त्री बच्चे क्या शह…
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रोक सको तो रोको | पूनम शुक्ला उछलेंगी ये लहरें अपनी राह बना लेंगी ये बल खाती सरिताएँ अपनी इच्छाएँ पा लेंगी रोको चाहे जितना भी ये झरने शोर मचाएँगे रोड़े कितने भी डालो कूद के ये आ जाएँगे चाहे ऊँची चट्टानें हों विहंगों का वृंद बसेगा सूखती धरा भले हो पुष्पों का झुंड हँसेगा हो रात घनेरी जितनी रोशनी का पुंज उगेगा रोक सको तो रोको यम भी विस्मित चल देगा डाल…
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Ghar-Baar Chhorkar Sanyaas Nahin Lunga | Vinod Kumar Shukla
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घर-बार छोड़कर संन्यास नहीं लूंगा | विनोद कुमार शुक्ल घर-बार छोड़कर संन्यास नहीं लूंगा अपने संन्यास में मैं और भी घरेलू रहूंगा घर में घरेलू और पड़ोस में भी। एक अनजान बस्ती में एक बच्चे ने मुझे देखकर बाबा कहा वह अपनी माँ की गोद में था उसकी माँ की आँखों में ख़ुशी की चमक थी कि उसने मुझे बाबा कहा एक नामालूम सगा।…
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अग्निपथ | हरिवंश राय बच्चन वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े, एक पत्र छाँह भी, माँग मत, माँग मत, माँग मत, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ। यह महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु स्वेद रक्त से, लथपथ लथपथ लथपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।…
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फ़ागुन का गीत | केदारनाथ सिंह गीतों से भरे दिन फागुन के ये गाए जाने को जी करता! ये बाँधे नहीं बँधते, बाँहें रह जातीं खुली की खुली, ये तोले नहीं तुलते, इस पर ये आँखें तुली की तुली, ये कोयल के बोल उड़ा करते, इन्हें थामे हिया रहता! अनगाए भी ये इतने मीठे इन्हें गाएँ तो क्या गाएँ, ये आते, ठहरते, चले जाते इन्हें पाएँ तो क्या पाएँ ये टेसू में आग लगा जाते, …
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Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai | Ramdhari Singh 'Dinkar'
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सच है, विपत्ति जब आती है | रामधारी सिंह दिनकर सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौ…
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Chithi Hai Kissi Dukhi Mann Ki | Kunwar Bechain
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चिट्ठी है किसी दुखी मन की | कुँवर बेचैन बर्तन की यह उठका-पटकी यह बात-बात पर झल्लाना चिट्ठी है किसी दुखी मन की। यह थकी देह पर कर्मभार इसको खाँसी, उसको बुखार जितना वेतन, उतना उधार नन्हें-मुन्नों को गुस्से में हर बार, मारकर पछताना चिट्ठी है किसी दुखी मन की। इतने धंधे! यह क्षीणकाय- ढोती ही रहती विवश हाय खुद ही उलझन, खुद ही उपाय आने पर किसी अतिथि जन के …
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Need Ka Nirman | Harivansh Rai Bachchan
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नीड़ का निर्माण | हरिवंश राइ बच्चन नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! वह उठी आँधी कि नभ में छा गया सहसा अँधेरा, धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भाँति घेरा, रात-सा दिन हो गया, फिर रात आई और काली, लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा, रात के उत्पात-भय से भीत जन-जन, भीत कण-कण किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर-फिर! नीड़ का निर्…
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गुन गाऊँगा | अरुण कमल गुन गाऊँगा फाग के फगुआ के चैत के पहले दिन के गुन गाऊँगा गुड़ के लाल पुओं और चाशनी में इतराते मालपुओं के गुन गाऊँगा दही में तृप्त उड़द बड़ों और भुने जीरों रोमहास से पुलकित कटहल और गुदाज़ बैंगन के गुन गाऊँगा होली में घर लौटते जन मजूर परिवारों के गुन भाँग की सांद्र पत्तियों और मगही पान के नर्म पत्तों सरौतों सुपारियों के गुन गाऊँगा…
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Soundaryalahari Shlok 87_ हिमानी हन्तव्यं हिमगिरिनिवासैक-चतुरौ_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndia
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Soundaryalahari Shlok 87_हिमानी हन्तव्यं हिमगिरिनिवासैक-चतुरौ_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaहिमानी हन्तव्यं हिमगिरिनिवासैक-चतुरौनिशायां निद्राणं निशि-चरमभागे च विशदौ ।वरं लक्ष्मीपात्रं श्रिय-मतिसृहन्तो समयिनांसरोजं त्वत्पादौ जननि जयत-श्चित्रमिह किम् ॥ 87 ॥--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/kavita-…
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साहिल और समंदर | सरवर ऐ समंदर क्यों इतना शोर करते हो क्या कोई दर्द अंदर रखते हो यूं हर बार साहिल से तुम्हारा टकराना किसी के रोके जाने के खिलाफ तो नहीं पर मुझको तुम्हारी लहरें याद दिलाती हैं कोशिश से बदल जाते हैं हालात तुमने ढाला है साहिलों को बदला है उनके जबीनों को मुझको ऐसा मालूम पड़ता है कि तुम आकर लेते हो बौसा साहिलों के हज़ार ये मोहब्बत है तुम्हा…
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फ़र्नीचर | अनामिका मैं उनको रोज़ झाड़ती हूँ पर वे ही हैं इस पूरे घर में जो मुझको कभी नहीं झाड़ते! रात को जब सब सो जाते हैं— अपने इन बरफाते पाँवों पर आयोडिन मलती हुई सोचती हूँ मैं— किसी जनम में मेरे प्रेमी रहे होंगे फ़र्नीचर, कठुआ गए होंगे किसी शाप से ये! मैं झाड़ने के बहाने जो छूती हूँ इनको, आँसुओं से या पसीने से लथपथ- इनकी गोदी में छुपाती हूँ सर- एक …
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दुआ | मनमीत नारंग कतरनें प्यार की जो फेंक दीं थी बेकार समझकर चल चुनें तुम और मैं हर टुकड़ा उस नेमत का और बुनें एक रज़ाई छुप जाएं सभी उसमें आज तुम मेरे सीने पे मैं उसके कंधे पर सिर रखकर रो लें ज़रा कुछ हँस दें ज़रा यूँ ही ज़िंदगी गुज़र बसर हो जाएगी शायद यह दुनिया बच जाएगीעל ידי Nayi Dhara Radio
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Dahi Jamane Ko Thoda Sa Jaman Dena | Yash Malviya
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दही जमाने को, थोड़ा-सा जामन देना | यश मालवीय मन अनमन है, पल भर को अपना मन देना दही जमाने को, थोड़ा-सा जामन देना सिर्फ़ तुम्हारे छू लेने से चाय, चाय हो जाती धूप छलकती दूध सरीखी सुबह गाय हो जाती उमस बढ़ी है, अगर हो सके सावन देना दही जमाने को, थोड़ा-सा जामन देना नहीं बाँटते इस देहरी उस देहरी बैना तोता भी उदास, मन मारे बैठी मैना घर से ग़ायब होता जाता, आँगन द…
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तमाशा | मदन कश्यप सर्कस में शेर से लड़ने की तुलना में बहुत अधिक ताकत और हिम्मत की ज़रूरत होती है जंगल में शेर से लड़ने के लिए जो जिंदगी की पगडंडियों पर इतना भी नहीं चल सका कि सुकून से चार रोटियाँ खा सके वह बड़ी आसानी से आधी रोटी के लिए रस्सी पर चल लेता है। तमाशा हमेशा ही सहज होता है क्योंकि इसमें बनी-बनायी सरल प्रक्रिया में चीजें लगभग पूर्व निर्धार…
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Soundaryalahari Shlok 86_ मृषा कृत्वा गोत्रस्खलन-मथ वैलक्ष्यनमितं_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndia
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Soundaryalahari Shlok 86_मृषा कृत्वा गोत्रस्खलन-मथ वैलक्ष्यनमितं_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaमृषा कृत्वा गोत्रस्खलन-मथ वैलक्ष्यनमितंललाटे भर्तारं चरणकमले ताडयति ते ।चिरादन्तः शल्यं दहनकृत मुन्मूलितवतातुलाकोटिक्वाणैः किलिकिलित मीशान रिपुणा ॥ 86 ॥--- Send in a voice message: https://podcasters.spotify.com/pod/show/kavita-sings-ind…
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जड़ें | राजेंद्र धोड़पकर हवा में बिल्कुल हवा में उगा पेड़ बिल्कुल हवा में, ज़मीन में नहीं बादलों पर झरते हैं उसके पत्ते लेकिन जड़ों को चाहिए एक आधार और वे किसी दोपहर सड़क पर चलते एक आदमी के शरीर में उतर जाती हैं उसके साथ उसके घर जाती हैं जड़ें और फैलती हैं दीवारों में भी आदमी झरता जाता है दीवारों के पलस्तर-सा जब भी बारिश होती है उसके स्वप्नों में प…
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संयोग | शहंशाह आलम यह संयोगवश नहीं हुआ कि मैंने पुरानी साइकिल से पुराने शहरों की यात्राएं कीं ख़ानाबदोश उम्मीदों से भरी इस यात्रा में संयोग यह था कि तुम्हारा प्रेम साथ था मेरे तुम्हारे प्रेम ने मुझे अकेलेपन से मुठभेड़ नहीं होने दिया एक संयोग यह भी था कि मेरा शहर जूझ रहा था अकेलेपन की उदासी से तुम्हारे ही इंतज़ार में और मेरे शहर का नाम तुमने खजुराहो…
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Wahan Nahin Milungi Main | Renu Kashyap
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वहाँ नहीं मिलूँगी मैं | रेणु कश्यप मैंने लिखा एक-एक करके हर अहसास को काग़ज़ पर और सँभालकर रखा उसे फिर दरअस्ल, छुपाकर मैंने खटखटाया एक दरवाज़ा और भाग गई फिर डर जितने डर उतने निडर नहीं हम छुपते-छुपाते जब आख़िर निकलो जंगल से बाहर जंगल रह जाता है साथ ही आसमान से झूठ बोलो या सच समझ जाना ही है उसे कि दोस्त होते ही हैं ऐसे। मेरे डरों से पार एक दुनिया है तु…
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Yadi Chune Hon Shabd | Nandkishore Acharya
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यदि चुने हों शब्द | नंदकिशोर आचार्य जोड़-जोड़ कर एक-एक ईंट ज़रूरत के मुताबिक लोहा, पत्थर, लकड़ी भी रच-पच कर बनाया है इसे। गोखे-झरोखे सब हैं दरवाज़े भी कि आ-जा सकें वे जिन्हें यहाँ रहना था यानी तुम। आते भी हो पर देख-छू कर चले जाते हो और यह तुम्हारी खिलखिलाहट से जिसे गुँजार होना था मक़्बरे-सा चुप है। सोचो, यदि यह मक़्बरा हो भी तो किस का? और ईंटों की …
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धूप | रूपा सिंह धूप!! धधकती, कौंधती, खिलखिलाती अंधेरों को चीरती, रौशन करती। मेरी उम्र भी एक धूप थी अपनी ठण्डी हड्डियों को सेंका करते थे जिसमें तुम! मेरी आत्मा अब भी एक धूप अपनी बूढ़ी हड्डियों को गरमाती हूँ जिसमें। यह धूप उतार दूँगी, अपने बच्चों के सीने में ताकि ठण्डी हड्डियों वाली नस्लें इस जहाँ से ही ख़त्म हो जाएँ।…
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चिड़िया | रामदरश मिश्रा चिड़िया उड़ती हुई कहीं से आयी बहुत देर तक इधर उधर भटकती हुई अपना घोंसला खोजती रही फिर थक कर एक जली हुई डाल पर बैठ गयी और सोचने लगी- आज जंगल में कोई आदमी आया था क्या?על ידי Nayi Dhara Radio
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उसका चेहरा | राजेश जोशी अचानक गुल हो गयी बत्ती घुप्प अँधेरा हो गया चारों तरफ उसने टटोल कर ढूँढी दियासलाई और एक मोमबत्ती जलाई आधे अँधेरे और आधे उजाले के बीच उभरा उसका चेहरा न जाने कितने दिनों बाद देखा मैंने इस तरह उसका चेहरा जैसे किसी और ग्रह से देखा मैंने पृथ्वी को !על ידי Nayi Dhara Radio
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गोल पत्थर | नरेश सक्सेना नोकें टूटी होंगी एक-एक कर तीखापन ख़त्म हुआ होगा किस-किस से टकराया होगा कितनी-कितनी बार पूरी तरह गोल हो जाने से पहले जब किसी भक्त ने पूजा या बच्चे ने खेल के लिए चुन लिया होगा तो खुश हुआ होगा कि सदमे में डूब गया होगा एक छोटी-सी नोक ही बचाकर रख ली होती किसी आततायी के माथे पर वार के लिए।…
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सांकल | रजनी तिलक चारदीवारी की घुटन घूँघट की ओट सहना ही नारीत्व तो बदलनी चाहिए परिभाषा। परम्पराओं का पर्याय बन चौखट की साँकल है जीवन-सार तो बदलना होगा जीवन-सार।על ידי Nayi Dhara Radio
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झरबेर | केदारनाथ सिंह प्रचंड धूप में इतने दिनों बाद (कितने दिनों बाद) मैंने ट्रेन की खिड़की से देखे कँटीली झाड़ियों पर पीले-पीले फल ’झरबेर हैं’- मैंने अपनी स्मृति को कुरेदा और कहीं गहरे एक बहुत पुराने काँटे ने फिर मुझे छेदाעל ידי Nayi Dhara Radio
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