Atma-Bodha Lesson # 49 :
Manage episode 318219339 series 3091016
आत्म-बोध के 49th श्लोक में आचार्यश्री हमें जीवन्मुक्त के बारे में बताते हैं। जीवन्मुक्त उसको कहते हैं जो शरीर के रहते-रहते मुक्त हो गया है। जिसने यहीं पर अपने आप को ब्रह्म जान लिया है। हम सब मूल रूप से ब्रह्म थे, और सदैव रहेंगे - अतः अपनी ब्रह्मस्वरूपता में जगाने के लिए कोई कर्म नहीं करने पड़ते हैं, केवल अपने मोह और अज्ञान को दूर करा जाता है। जीवन्मुक्त होना ही जीवन का मूल लक्ष्य होता है। इसके लिए पहले वेदान्त शास्त्र का विद्वान होना चाहिए। इसी से हमें वो मोक्षदायी विवेक प्राप्त होता है, की हम अपनी उपाधियों से विलक्षण एक सत्चिदानन्द स्वरुप सत्ता हैं। फिर इसी ज्ञान में रमते हुए अपने समस्त संशय और विपर्यय दूर होते ही अपने स्वरुप में निष्ठा प्राप्त हो जाती है - माानो एक कीट अब भ्रमर बन गया हो।
इस पाठ के प्रश्न :
- १. जीवन को मूल लक्ष्य क्या होता है?
- २. मुक्ति क्या जीतेजी होती है अथवा मरणोपरांत ?
- ३. जीव को ब्रह्म होने के लिए क्या करना होता है ?
Send your answers to : vmol.courses-at-gmail-dot-com
79 פרקים